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Saturday, March 7, 2009

लालकृष्ण आडवाणी, लोग पहचाने वह हाथ जिसने यह संभव कर दिखाया।

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Amazing speech by Bharat's (misnomer: India) next prospective Prime Minister Mr. Lal Krishna Advani. He has made a perfect case against derelict, fashion-maniac, party hopper, corrupt, Anti-Hindu, Anti-Jew, dynastic monarchic nepotist Congress led Utterly Pathetic Alliance (UPA). You must also read the Truth you must know before you VOTE and watch Arun Shourie reveal secrets of Congress. It's a Deceptive world and you must know about the Pizza effect. Be informed about the legislations enacted by this indolent government in 14th Lok Sabha, the worst in history, including the one which will force Indians to now pay pension to terrorist families. There have been over 42 major terrorist and naxal attacks under Congress led UPA of despot Antonia Maino, how secure are you?

Please also watch Mr. Advani quote from holy Mahabharat in Lok Sabha during post Mumbai Attack speech. For the benefit of Raul Vinci's general knowledge let us mention that Mumbai is in Bharat, it's the place where an unprecedented terrorist attack took place, it was practically a war was waged on Bharat on 26/11/2008 but Congress heir apparent was busy partying till 5 AM in the morning and no Raul, Mumbai (६०३ km²/२३३ sq mi) is not bigger than New York City (३०५ sq mi/७९० km²).


श्री प्रणब मुखर्जी ने अंतरिम वित्तमंत्री के रूप में कल बजट पेश करते हुए कहा था,''जब समय आयेगा, लोग हाथ को पहचानेंगे जिसने यह संभव कर दिखाया है।'' मैं उनसे सहमत हूं। हां, लोग हाथ को पहचानेंगे -

• वह हाथ जिसने आसमान छूती मंहगाई दी।
• वह हाथ जिसकी वजह से किसानों को आत्महत्या करने पर मजबूर होना पड़ा।
• वह हाथ जिसने बेरोजगारी बढ़ने दी।
• वह हाथ जिसने बाजार में बनावटी बुलबुला पैदा होने दिया।
• वह हाथ जिसके कारण आर्थिक संकट पैदा हुआ।
• वह हाथ जिसकी वजह से सत्यम/मेटास जैसे घोटाले और 'वोटों के लिए पैसा' जैसे कांड हुए।
• वह हाथ जिसकी वजह से अधिकाधिक आतंकवादी हमले हुए।
• वह हाथ जिसकी वजह से भ्रष्टाचार बढ़ा।

अध्यक्ष महोदय,

मैं संसद के संयुक्त सत्र में महामहिम राष्ट्रपति द्वारा दिए गए अभिभाषण पर धन्यवाद देने के लिए खड़ा हुआ हूं।

राष्ट्रपतिजी का अभिभाषण सरकार द्वारा तैयार किया जाता है। यह दोनों सदनों के लिए एक प्रथा बनी हुई है कि बहस के अंत में राष्ट्रपति के प्रति धन्यवाद प्रस्ताव पारित किया जाए। लेकिन बहस सत्तापक्ष और विपक्ष, दोनों के सदस्यों को अपने स्वतंत्र विचार प्रस्तुत करने के लिए अवसर प्रदान करती है। यही संसदीय लोकतंत्र की सुन्दर परम्परा है। उस समय हम सभी एकजुट हैं जब संसदीय प्रणाली के सिध्दांतों और प्रतीकों के प्रति हमारी साझा निष्ठा की पुष्टि करने का समय आता है। साथ ही, हमें विरोध तथा आलोचना करने का भी अधिकार प्राप्त है।

आगे बढ़ने से पहले, मैं पूरे सदन के साथ प्रधानमंत्री डा0 मनमोहन सिंह के शीघ्र स्वस्थ होने की कामना करता हूं।

मैं यह चाहता हूं कि मेरे साथ पूरा सदन पूर्व प्रधानमंत्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी के शीघ्र स्वस्थ होने की भी कामना करे।

यह 14वीं लोकसभा का अंतिम सत्र है। मैं अपनी ओर से तथा पूरे विपक्ष के सभी माननीय सांसदों की ओर से सदन के अध्यक्ष श्री सोमनाथ चटर्जी को उनकी सेवाओं के लिए धन्यवाद देता हूं और सराहना करता हूं।

एक अन्य व्यक्ति भी हैं जिनको मैं और विपक्ष के मेरे सहयोगी धन्यवाद देते हैं और उनकी सराहना करते हैं। वे व्यक्ति हैं-सदन के नेता श्री प्रणब मुखर्जी। मुझे कभी-कभी आश्चर्य होता है कि प्रणब बाबू के बिना यू.पी.ए. सरकार का क्या होता। चाहे कैसी भी जिम्मेदारी हो, उनके कंधे उस बोझ को उठाने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उन्होंने 25 वर्ष पहले अपना बजट प्रस्तुत किया था। कल उन्होंने अंतरिम वित्तमंत्री के रूप में फिर ऐसा ही किया।

सरकार की नीतियों और कामकाज पर हमारे भिन्न मत हो सकते हैं लेकिन सदन में उनकी सेवाओं के बारे में कोई सन्देह नहीं हो सकता।

जनता यू.पी.ए. सरकार का मूल्यांकन एक विफल सरकार के रूप में करेगी

अध्यक्ष महोदय,

सरकार अपने कार्यकाल के आखिरी चरण में पहुंच गई है। चुनाव बिल्कुल निकट आ चुके हैं। तथापि, सरकार ने राष्ट्रपति के अभिभाषण में जो दावा किया है, उसकी कटु सच्चाई यह है कि जनता सरकार के पांच वर्ष के कामकाज का मूल्यांकन करके ही जनादेश देगी। यह एक विफल सरकार है। वास्तव में, वे इसका भारत की एक सबसे असफल सरकार के रूप में मूल्यांकन करेंगे।

संसद का पिछला सत्र 26 नवम्बर, 2008 को मुम्बई में हुए भयानक आतंकवादी हमले के बाद हुआ था। मैंने कहा था कि जब हमारी मातृभूमि पर शत्रु द्वारा आक्रमण किया जाता है, तो हम सभी को एकजुट होना पड़ेगा। मैंने महाभारत के एक श्लोक का आह्वान करते हुए कहा था, ''वयं पंचाधिकम् शतम'' - सामान्य दिनों में पांडव पांच हैं और कौरव सौ हैं लेकिन शत्रु का मुकाबला करते समय वे एकजुट हैं और एक सौ पांच हैं।

विपक्ष ने संकट के समय राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाया है। लेकिन जो लोग सत्ता में बैठे हैं; क्या उन्होंने राष्ट्र के प्रति अपना कर्तव्य निभाया है?

जब सरकार ने दो आतंक-विरोधी विधेयक सदन में पेश किए थे, तो हमने उनका समर्थन किया था। इससे सरकार तथा इसके घटक दलों ने पूरी तरह से यू-टर्न लिया जो कहते रहे थे कि किसी विशेष आतंक-विरोधी कानून की जरूरत नहीं है क्योंकि विद्यमान कानून ही पर्याप्त हैं। वास्तव में वर्ष 2004 में वर्तमान सरकार ने सबसे पहले पोटा को निरस्त करने का निर्णय लिया था।

पिछले सत्र में आपके पास इसका उत्तर नहीं था कि आपने यू-टर्न क्यों लिया। लेकिन मैं आपको बता दूं कि आपको चुनाव अभियान में इस प्रश्न का जवाब देना पड़ेगा क्योंकि आतंकवाद से लड़ने में आपकी प्रतिबध्दता पर सन्देह है। यह एक ऐसा संकट है कि आपको एक निश्चित रूख अपनाने पर मजबूर होना पड़ा।

और आप जो आतंक-विरोधी कानून लाए हैं, उसमें भी दोष है। विद्यमान कानून के अन्तर्गत कसाब जैसे अपराधी के अपराध-कबूलने को न्यायालय के समक्ष साक्ष्य के रूप में नहीं लाया जा सकता है। जब मैंने इसका पिछले सत्र में उल्लेख किया था और जब दूसरे माननीय सदस्यों ने अन्य कमियों की ओर इशारा किया था तो गृहमंत्री श्री पी0 चिदम्बरम ने कहा था कि कमियां बाद में सुधारी जा सकती हैं।

मैं सत्ता में बैठे अपने मित्रों से कहूंगा कि आपको ऐसा करने का मौका नहीं मिलेगा। एक नई सरकार जो आतंकवाद से लड़ने के लिए ज्यादा प्रतिबध्द है, ही ऐसा करेगी।

सरकार ने 26/11 की घटना की जांच क्यों नहीं कराई?

मैं 26 नवम्बर की घटना पर दूसरा महत्वपूर्ण बिन्दु उठाता हूं। सरकार ने इस घटना की न्यायिक जांच क्यों नहीं कराई कि मुम्बई पर आतंकवादी हमला कैसे हुआ? बहरहाल, प्रधानमंत्री से लेकर रक्षामंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार तक सभी ने सार्वजनिक तौर पर यह कहा था कि समुद्री मार्ग से आतंकवादी हमले हो सकते हैं। इसलिए, सुरक्षा व्यवस्था की इन कमियों की जांच क्यों नहीं की गई कि आतंकवादी घटना कैसे हुई और इसके लिए कौन जिम्मेदार था? केन्द्र सरकार की क्या जिम्मेदारी थी? राज्य सरकार की क्या जिम्मेदारी थी? बहरहाल, जवाबदेही तय करनी होगी।

26 नवम्बर की घटना के दूसरे पहलू की भी जांच-पड़ताल करने की जरूरत है। 26 नवम्बर को मुम्बई में हुआ हमला स्थानीय तत्वों की मदद के बगैर नहीं किया जा सकता था।

इसके अलावा, जांच और उपचारी कार्रवाई इस आशा के साथ की जानी चाहिए जिससे भविष्य में ऐसे हमलों को अधिक मुश्किल बनाने में मदद मिले। 11 सितम्बर के बाद अमेरिका ने एक जांच आयोग स्थापित किया था जिसकी रिपोर्ट से कई दूरगामी निर्णय लेने में मदद मिली और उसके बाद अमेरिका में पिछले नौ सालों से कोई भी आतंकवादी घटना नहीं घटी है। क्या हमें इन वैश्विक अनुभवों से सबक नहीं सीखना चाहिए।

अफजल गुरू और बंगलादेश के अवैध घुसपैठियों पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों का पालन नहीं किया गया

अध्यक्ष महोदय, जनता हमारी आंतरिक सुरक्षा के लिए खतरे से लड़ने में इस सरकार के पांच साल के कामकाज का दो और मुद्दों के आधार पर मूल्यांकन करेगी। पहला, सरकार ने अफजल गुरू जो भारत की संसद पर आतंकवादी हमले का प्रमुख अपराधी है, की फांसी की सजा पर सर्वोच्च न्यायालय के निर्णय पर कार्रवाई नहीं की है।

दूसरा, सरकार ने असम और देश के अन्य हिस्सों में बंगलोदश से हो रही अवैध घुसपैठ को रोकने हेतु प्रभावी कदम उठाने में सर्वोच्च न्यायालय के निर्देशों पर कार्रवाई नहीं की है। सर्वोच्च न्यायालय ने चेतावनी दी है कि बंगलादेश से बे-रोकटोक घुसपैठ से ''बाह्य आक्रमण'' जैसी स्थिति पैदा हो गई है - वास्तव में कड़े शब्दों का इस्तेमाल किया गया है।

याद होगा कि सर्वोच्च न्यायालय ने यू.पी.ए. सरकार को इस मुद्दे पर दूसरी बार फटकार लगाई है। एक बार उस समय जब न्यायालय ने आई.एम.डी.टी. एक्ट को असंवैधानिक बताकर रद्द कर दिया था। और दूसरी बार, जब सरकार ने आई.एम.डी.टी. एक्ट के बहुत ही असंवैधानिक प्रावधानों को विदेशी अधिनियम में संशोधन के रूप में लाने की कोशिश की थी, जिसे भी शीर्ष न्यायालय द्वारा निरस्त कर दिया गया था।

अध्यक्ष महोदय, यह कोई भारतीय जनता पार्टी बनाम कांग्रेस मुद्दा नहीं है। इस सदन में प्रतिनिधित्व करने वाली सभी पार्टियां जिन्होंने संविधान के प्रति निष्ठा रखने की शपथ ली है, राष्ट्र की एकता एवं अखंडता की रक्षा करने के कर्तव्य से बंधी हुर्इं हैं। राष्ट्र की सुरक्षा करना हम सभी का परम कर्तव्य है। सरकार चाहे इस पार्टी की हो या उस पार्टी की, इस गठबन्धन की हो या उस गठबन्धन की, हम सभी भारत की भावी पीढ़ियों के प्रति जवाबदेह हैं।

असम में ''बाह्य आक्रमण'' को रोकने में जानबूझकर हुई विफलता के लिए हमारी भावी पीढ़ियां कभी माफ नहीं करेंगी

अब जबकि सर्वोच्च न्यायालय ने स्वयं ही असम से हो रही अवैध घुसपैठ को ''बाह्य आक्रमण'' की संज्ञा दी है, जिसके परिणामस्वरूप, असम तथा भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र को भविष्य में कुछ ही समय में राष्ट्र के विभाजन का वास्तविक खतरा महसूस होने लगा है, क्या इसके लिए हमारी भावी पीढ़ियां यू.पी.ए. सरकार को दोषी नहीं ठहरायेंगी? जिस प्रकार नेहरू सरकार को कश्मीर की समस्या जो छह दशकों के बाद भी अनसुलझी रही है, के लिए वर्तमान पीढ़ियों ने दोषी ठहराया है।

पंडित नेहरू के मामले में कम से कम इतना तो कहा जा सकता है कि उनकी यह गलती वोट बैंक की राजनीति के चलते तो नहीं थी। लेकिन बंगलादेशी घुसपैठ के प्रति आज की कांग्रेस पार्टी की कपटपूर्ण नीति के बारे में क्या कहा जा सकता है? वोटों की खातिर आपको असम का विनाश होने और भविष्य में भारत के अपंग बनने के बारे में भी बिल्कुल चिन्ता नहीं है।

हम ऐसा नहीं होने देंगे। भारत की जनता ऐसा कभी नहीं होने देगी।


चारों ओर निराशा का माहौल ही आर्थिक मोर्चे पर यू.पी.ए. सरकार की उपलब्धि

अध्यक्ष महोदय,

अब मैं आर्थिक मोर्चे पर सरकार द्वारा किए गए दावों की कुछ उन उपलब्धियों पर आता हूं जिनका राष्ट्रपति के अभिभाषण में उल्लेख किया गया है। उपलब्धियों और आत्म-श्लाघा का स्वर बजट में भी दोहराया गया जिसे कल सरकार ने सदन में पेश किया था।

इन तथ्यों को किस आधार पर बताया गया?

मेरे पास एक प्रसिध्द अर्थशास्त्री डा0 बिबेक देबराय जो किसी समय राजीव गांधी इंस्टीटयूट के निदेशक रहे थे, का एक लेख है। इसलिए, उन्होंने जो कुछ कहा है, उसे कोई पक्षपातपूर्ण नहीं बता सकता। 6 जनवरी, 2009 के ''द इंडियन एक्सप्रेस'' में छपे उनके लेख के शीर्षक में कहा गया है : "Downgrade UPA's Fiscal Management" (यू.पी.ए.की अधोमुखी वितीय व्यवस्था)।

उन्होंने लिखा है : यह केवल भारतीय अर्थव्यवस्था की कहानी नहीं है, बल्कि वितीय घाटा भी लगातार निराशा की ओर बढ़ रहा है..............तेल और उर्वरक जैसी बजट से अलग वस्तुओं की कीमतें घट रही हैं, केन्द्र सरकार का घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) के 9 प्रतिशत तक हो जाएगा...............राज्यों का घाटा 3 प्रतिशत होगा और दोनों को मिलाकर यह घाटा सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 12% हो जाएगा.........बारह प्रतिशत एक भयावह आंकडा है जो सन् 1991 से ऐसा कभी नहीं रहा। यह मुद्दा अनिवार्यत: भारत की सम्पूर्ण ऋण दर में गिरावट का नहीं है, बल्कि एक बार यह 16 फरवरी को सार्वजनिक क्षेत्र की सूचना बन चुका है। वर्ष 1991 से हरेक सरकार के कार्यकाल के दौरान वित्तीय औचित्य पर आम सहमति होती रही है। वह बात अब यू.पी.ए. के शासनकाल में समाप्त हो गई है। हमें यू.पी.ए. के वितीय प्रबंध को घटिया आंकना चाहिए।

डा0 देबराय ने अपना लेख इस वाक्य के साथ समाप्त किया : "Citizens have simply been too kind"

चारों ओर आर्थिक बदइंतजामी

यह वितीय कुप्रबन्धन के बारे में है। ऋण कुप्रबन्धन की तो बात ही क्या कहें। वास्तव में बाजार में ऋण का अकाल पड़ा हुआ है। बैंक उधार नहीं दे रहे हैं। इससे छोटे और मझोले उद्यम बुरी तरह से प्रभावित हुए हैं। मैं यहां अर्थव्यवस्था के अनौपचारिक तथा असंगठित क्षेत्रों की गणना नहीं कर रहा हूं क्योंकि वे बैंकिग क्षेत्र से कोई मदद नहीं लेते हैं।

आपकी सरकार ने डा0 सी. रंगराजन की अध्यक्षता में ''वितीय समावेशन'' "Financial Inclusion" पर एक समिति नियुक्त की थी। यह एक अच्छा विचार है। हम वितीय समावेशन के बिना समग्र विकास किस तरह कर सकते हैं? लेकिन समिति की रिपोर्ट में क्या दर्शाया गया?

• 51.4 प्रतिशत किसान परिवारों को औपचारिक/अनौपचारिक, दोनों स्रोतों से वित्तीय दृष्टि से अलग कर दिया गया है।
• कुल मिलाकर 73 प्रतिशत किसान परिवारों को औपचारिक स्रोतों से ऋण नहीं मिल पाता है।

यह स्वतंत्रता के 60 वर्षों के बाद की स्थिति है। कांग्रेस पार्टी ने इन साठ वर्षों में सबसे लम्बी अवधि तक भारत पर शासन किया है। कांग्रेस पार्टी ने कुछ खास लोगों के विकास (Exclusive Growth) को बढ़ावा दिया है न कि समग्र विकास (Inclusive Growth)को।

और यह कुछ खास लोगों का विकास (Exclusive Growth) जितना अधिक यू.पी.ए. के पांच वर्षों के कार्यकाल में छाया रहा उतना किसी भी समय दिखाई नहीं दिया। आपकी नीतियों से मुट्ठी भर भारतीयों को अरबपति बनने में मदद मिली है। समाचारों में लिखा जाता रहा है कि कितने भारतीय व्यापारी एवं उद्योगपति विश्व के शीर्ष उद्योगपतियों की सूची में 10वें अथवा 50वें अथवा 100वें स्थान पर हैं।

सरकार ने पूंजी बाजार की अपनी बदइंतजामी के कारण, शेयर मार्केट में एक काल्पनिक बुलबुला बनने दिया। स्टॉक मार्केट जनवरी, 2008 में 21,000 अंक तक पहुंच गया था जो एक वर्ष बाद गिरकर 10,000 अंकों से नीचे आ गया। बुलबुला फूट गया क्योंकि इसे फूटना ही था। जब यह बुलबुला फूटा, तो छोटे निवेशकों को बुरी तरह नुक्सान हुआ।

मूल्य वृध्दि

लेकिन मैं स्टॉक मार्केट में आई हलचल से कम चिन्तित हूं। मुझे आम आदमी के बाजार में आई तेजी की चिन्ता अधिक है। यू.पी.ए. सरकार का ध्यान स्टॉक मार्केट पर था न कि सब्जी मार्केट अथवा अनाज मार्केट अथवा किराना मार्केट पर जहां आम आदमी को वस्तुओं की मूल्यवृध्दि का अहसास हुआ और अभी भी महसूस हो रहा है - कि आवश्यक वस्तुओं की कीमतें उसकी पहुंच से बाहर हो गई हैं।

मेरे पास 13 फरवरी के ''द इकनॉमिक टाइम्स'' की एक रिपोर्ट है जिसमें छपा है : ''आवश्यक वस्तुओं की खुदरा कीमतें 40 प्रतिशत तक बढ़ गई है।''

''संसद के समक्ष रखे गए मूल्यों के आंकडें के अनुसार, प्याज, कपड़े धोने के साबुन, साड़ी सहित 23 आवश्यक वस्तुओं की खुदरा कीमतें वर्ष 2008 के उत्तरार्ध में 40% प्रतिशत तक बढ़ गई हैं।''

यह सूचना किसी और व्यक्ति ने नहीं दी बल्कि उपभोक्ता मामलों के राज्यमंत्री श्री तसलीमुद्दीन ने राज्यसभा में दिए गए अपने लिखित उत्तर में दी थी।

मैं आपको याद दिलाता हूं कि सरकार ने मूल्यों पर कोई नियंत्रण नहीं रखा है। मूल्यवृध्दि के कारण करोड़ों भारतीय लोग और अधिक गरीब हो गए हैं और मंहगाई की मार गरीबों पर ज्यादा पड़ी है।

आधारभूत ढांचा विकास की उपेक्षा

अध्यक्ष महोदय, अब मैं सरकार द्वारा आधारभूत ढांचा विकास की बदइंतजामी के मुद्दे पर आता हूं।''

''इंडिया टुडे'' पत्रिका के 30 जनवरी, 2009 के अंक के एक मुख्य समाचार में राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना की दुर्दशा पर प्रकाश डाला गया है जिसमें कहा गया : Roads to nowhere (मार्ग जो कहीं नहीं ले जाते)।

"Eight years after it took off as a prominent signpost of India's drive to be one of the world's fastest growing economies, the National Highways Development Programme (NHDP) with its planned network of world-class highways and an investment of Rs 2,20,000 crore is a picture of missed deadlines, policy blips, red-tape, and most importantly, delayed economic benefits to the country."

(भारत में आठ साल पहले राष्ट्रीय राजमार्ग विकास कार्यक्रम (एनएचडीपी) शुरू हुआ था। यह दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती अर्थव्यवस्थाओं में भारत के शामिल होने के अभियान का महत्वपूर्ण प्रतीक था। इस कार्यक्रम के तहत 2,20,000 करोड़ रूपये की लागत से देश में राजमार्गों का जाल बिछाया जाना था। लेकिन यह परियोजना लालफीताशाही और गलत नीति के कारण समय-सीमा के बीत जाने के बाद भी पूरी नहीं हुई है। लिहाजा, देश को इसका आर्थिक फायदा नहीं मिल पा रहा है।)

मेरे पास वास्तविक आंकडे उपलब्ध हैं कि किस तरह यू.पी.ए. सरकार द्वारा इस महत्वपूर्ण परियोजना की बुरी तरह से उपेक्षा की गई है।

यही सच्चाई भारत निर्माण जोकि ग्रामीण आधारभूत ढांचे के विकास से सम्बन्धित है, पर सरकार के दावे के बारे में की।

• ग्रामीण विद्युतीकरण केवल 34 प्रतिशत हुआ है।
• सरकारी तौर पर निर्धारित बी.पी.एल. परिवारों का मात्र 6 प्रतिशत विद्युतीकरण हुआ है।
• लगभग 48 प्रतिशत बस्तियों में ही पेयजल के कनेक्शन दिए गए हैं।
• प्रधानमंत्री ग्राम सड़क योजना समय-सीमा से बहुत पीछे चल रही है।

यदि आधारभूत ढांचे की ही उपेक्षा की जाती रही हो तो वास्तविक विकास कैसे हो सकता है? रोजगार का सृजन कैसे हो सकता है?

बेरोजगारी

अध्यक्ष महोदय, आर्थिक संकट के कारण आज बेरोजगारी जंगल की आग की तरह फैल रही है। अर्थव्यवस्था के प्रत्येक क्षेत्र - निर्माण, ऑटोमोबाइल, पूंजीगत सामान, कपड़ा, हीरा और जेवरात उद्योग, पर्यटन और निश्चित तौर पर प्रौद्योगिकी सूचना (आईटी) और आई.टी. पर आधारित सेवाएं - बुरी तरह से प्रभावित हुई हैं। अर्थव्यवस्था में तेजी से आई गिरावट के कारण करोड़ों भारतीय लोगों के रोजगार समाप्त हो गए हैं और उससे भी अधिक लोगों को अपनी आजीविका के खोने का डर सता रहा है।

फेडरेशन ऑफ इंडियन एक्सपोर्ट ऑर्गेनाइजेशन्स के अनुसार, मार्च 2009 तक एक करोड़ रोजगारों के समाप्त होने की संभावना है।

इससे भी बढ़कर, बेरोजगारी से तंग आकर आत्महत्या करने वाले लोगों के बारे में भी सुनने को मिला है।

हमारे पास पहले से ही बड़ी तादाद में बेरोजगारी वाली आबादी है जिनमें से अधिकतर भारतीय युवा हैं और अब रोजगार में लगे लोगों की नौकरियां भी छूट रही हैं।

लोग अपने भविष्य की अनिश्चितता के बारे में काफी चिन्तित हैं। मैंने अपने राजनीतिक जीवन के अनेक वर्षों में लोगों में विश्वास की ऐसी कमी कभी नहीं देखी।

मुझे दु:ख के साथ कहना पड़ता है कि राष्ट्रपति के अभिभाषण में इस मुद्दे का बिल्कुल भी जिक्र नहीं किया गया।

अंतरिम वित मंत्री ने कल बजट पेश करते हुए कहा था : जब समय आयेगा लोग हाथ को पहचानेंगे जिसने यह संभव कर दिखाया है।

मैं उनसे सहमत हूं।

• लोग उस हाथ को पहचानेंगे जिसने आसमान छूती मंहगाई दी।
• लोग उस हाथ को पहचानेंगे जिसकी वजह से हजारों किसानों को आत्महत्या
करने पर मजबूर होना पड़ा।
• लोग उस हाथ को पहचानेंगे जिसने देश में बेरोजगारी बढ़ने दी।
• लोग उस हाथ को पहचानेंगे जिसने बाजार में बनावटी बुलबुला बनने दिया।
• लोग उस हाथ को पहचानेंगे जिसकी वजह से आर्थिक संकट पैदा हुआ।
• लोग उस हाथ को पहचानेंगे जिसकी वजह से सत्यम/मेटास जैसे घोटाले हुए।

यू.पी.ए. का भ्रष्टाचार और संस्थाओं के दुरूपयोग का रिकार्ड

अध्यक्ष महोदय, राष्ट्रपति के अभिभाषण का एक अत्यंत निराशाजनक पहलू यह है कि इसमें इस बात का कोई उल्लेख नहीं है कि भ्रष्टाचार से लड़ने हेतु सरकार द्वारा अब तक क्या कार्रवाई की गई है। मुझे निराश होने के साथ-साथ थोड़ा आश्चर्य भी हुआ।

भ्रष्टाचार से लड़ाई का मुद्दा कांग्रेस पार्टी अथवा यू.पी.ए. सरकार के एजेंडा में कभी नहीं रहा। भ्रष्टाचार का एक समस्या के रूप में उल्लेख करके भी सहानुभूति हासिल नहीं की। यह इसलिए क्योंकि यू.पी.ए. शासन में भ्रष्टाचार पूरी तरह से फल-फूल रहा है।

भारतीय संसद के इतिहास में राजनीतिक भ्रष्टाचार का सबसे बड़ा मामला ''वोटों के लिए पैसा'' कांड था जिसे सरकार ने जुलाई, 2008 में विश्वासमत के दौरान अपने आपको बचाने हेतु किया था। उस घोटाले से बड़ा कांड तो अपने कृत्य को छिपाना और उसकी लीपा-पोती करना था।

''वोटों के लिए पैसा'' कांड का परिणाम यह हुआ कि आज झारखंड में क्या हो रहा है। मैं किसी का नाम नहीं लेना चाहता। पहले एक स्वतंत्र विधायक को मुख्यमंत्री बनाया गया था। बाद में एक व्यक्ति जिसका सरकार ने विश्वास मत के दौरान समर्थन लिया था-को झारखंड का मुख्यमंत्री बना दिया गया।

इससे यह स्पष्ट है कि झारखंड की वर्तमान विधानसभा में कोई स्थिर सरकार नहीं हो सकती। और अभी राष्ट्रपति शासन लागू है। झारखंड में संसदीय चुनावों के साथ ही विधानसभा के चुनाव क्यों नहीं करा दिए जाएं?

जब भारतीय जनता पार्टी के सदस्यों का एक प्रतिनिधिमंडल राज्यपाल से मिलने गया तो उसे पुलिस की ज्यादतियों का सामना करना पड़ा। क्या इससे भारत के लोकतंत्र की गरिमा नहीं घटी है? मेरे सहयोगी पूर्व वित्तमंत्री श्री यशवंत सिन्हा को बुरी तरह से पीटा गया। उनके सिर पर अभी भी चोट का निशान मौजूद है।

किसी भूतपूर्व वितमंत्री को इस तरह के दुर्व्यवहार का सामना नहीं करना पड़ा होगा जबकि दूसरे भूतपूर्व वितमंत्री अब गृहमंत्री बन गए हैं।

लेकिन एक बड़ा मुद्दा शासन की संस्थाओं के दुरूपयोग का है। पिछले सप्ताह ही सर्वोच्च न्यायालय ने एक राजनीतिक पार्टी के नेता से सम्बन्धित मामले में सीबीआई की कठोरता से निन्दा की है। वह पार्टी भारतीय जनता पार्टी की कोई मित्र नहीं है। वास्तव में, कांग्रेस ही उत्तर प्रदेश में गठबन्धन के लिए उससे संधि कर रही है।

लेकिन पिछले पांच वर्षों में सी.बी.आई. और अन्य संस्थाओं का राजनीति हित साधने के लिए जिस ढंग से उपयोग और दुरूपयोग किया गया है, वह दुर्भाग्यपूर्ण है। इसे देखकर सर्वोच्च न्यायालय को टिप्पणी करनी पड़ी : ''इस देश को भगवान बचाए।''

मैं यहां इस बात की चर्चा नहीं कर रहा हूं कि चुनाव आयोग में क्या चल रहा है?

और न मैं इस बात को दोहरा रहा हूं कि भारत के प्रधानमंत्री जैसे शीर्ष पद के अवमूल्यन और सत्ता के सबसे बड़े केन्द्र जो यू.पी.ए. शासन के पूरे पांच वर्षों के दौरान जारी रहा, के नये उदाहरण के बारे में अक्सर क्या कहा गया है।

इन पूरे पांच वर्षों में लोगों को आश्चर्य होता रहा कि क्या भारत में कोई प्रधानमंत्री मौजूद है। और आज भी लोग आश्चर्य करते हैं : राष्ट्र के मामलों का वास्तविक प्रभारी कौन है? आज सरकार में नेतृत्व का पूरी तरह संकट छाया हुआ है।

सदन के तीन वरिष्ठ नेता

अध्यक्ष महोदय, मैं पिछले लगभग 40 सालों से संसद सदस्य रहा हूं। मैं सन् 1970 में राज्यसभा का सदस्य बना था। आप 1971 में लोकसभा के सदस्य बने थे। श्री प्रणब मुखर्जी हम दोनों से पहले सांसद बने थे - वे पहली बार 1969 में राज्यसभा में चुनकर आये थे।

महोदय, जब आप सांसद बने थे, तो आप दूसरी पार्टी में थे। इसी तरह, प्रणब बाबू और मैं भी अलग-अलग पार्टियों से थे। तथापि, हम तीनों-लोकसभा के अध्यक्ष, सदन के नेता और प्रतिपक्ष के नेता के रूप में-सदन के वरिष्ठ कहलाए जाने के पात्र हैं।

हममें से कोई भी अमर नहीं है। न ही हममें से किसी की संसद में कोई स्थायी जगह है। हम सभी आए और चले जाएंगे। लेकिन हम सभी कल के प्रति उत्तरदायी हैं।

हमें अपने आप से पूछना चाहिए कि हम सांसदों की भावी पीढ़ियों के लिए अपने पीछे क्या मिसाल, क्या विरासत, क्या शासन पध्दति और क्या संस्कृति छोड़ने जा रहे हैं।

राष्ट्र इस सदन से बड़ा है। लोकसभा से ज्यादा महत्वपूर्ण जनसभा है। लेकिन हमारा व्यवहार ही लोगों के विचारों को प्रभावित करता है। यदि हम स्वयं अच्छा व्यवहार करेंगे तो शासन प्रणाली में लोगों का विश्वास मजबूत होगा। यदि हम स्वयं ही बुरा और गलत व्यवहार करेंगे, यदि हम संसद और शासन की गरिमा को कमजोर और कलंकित करेंगे तो लोगों का विश्वास समाप्त हो जाएगा।

यही सबसे बड़ा प्रश्न है जो यू.पी.ए. के कुशासन के पांच वर्षों के बाद उठा है।

अध्यक्ष महोदय, भारत की जनता इस वर्ष संभवत: अप्रैल-मई में अपना जनादेश देगी। नई सरकार बनाने के लिए लोगों का जनादेश चाहे किसी को भी मिले, उसे बुरी तरह से अव्यवस्थित अर्थव्यवस्था मिलेगी और काफी गड़बड़ वाला शासन मिलेगा। उसे उत्तराधिकार में चारों ओर निराशा और असुरक्षा का माहौल मिलेगा।

इन्हीं सब कारणों से जनता इसका एक विफल सरकार के रूप में मूल्यांकन करेगी।

लोग उस हाथ को पहचानेंगे जिसने चारों ओर निराशा और असुरक्षा का माहौल पैदा किया है।

और जनता द्वारा उस हाथ को सबक सिखाया जाएगा।

इन्हीं शब्दों के साथ, मैं एक बार फिर प्रस्ताव के लिए अपने समर्थन की पुष्टि करता हूं।

धन्यवाद

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